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शहतूत में जैव उर्वरक प्रबंधन

शहतूत की पत्ती रेशम उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। शहतूत के पौधे उगाए जाते हैं और उनकी पत्तियाँ रेशम के कीड़ों को खिलाई जाती हैं। रेशम उत्पादन में भारत का दूसरा स्थान है। रेशमकीट का विकास और कोकून की उपज शहतूत की पत्तियों की गुणवत्ता पर निर्भर करती है। जैव-उर्वरक लगाने से न केवल शहतूत के लिए आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्वों और सूक्ष्म पोषक तत्वों की आसानी से उपलब्धता होती है, बल्कि गुणवत्तापूर्ण पत्ती उत्पादन भी होता है। आइए देखते हैं शहतूत के पौधों के लिए इस्तेमाल होने वाले जैव उर्वरकों के बारे में।

एज़ोस्पिरिलम:

शहतूत एक जैव-उर्वरक है जो पौधों को पोषक तत्व प्रदान कर सकता है। जड़ क्षेत्र में 78% नाइट्रोजन का उपयोग पौधे के उत्थान के लिए किया जाता है। 2 किलो एज़ोस्पिरिलम प्रति एकड़ अच्छी तरह से खाद गाय के गोबर के साथ मिलाकर मिट्टी में मिलाना चाहिए। रासायनिक खाद का प्रयोग 15 दिन पहले या बाद में करना चाहिए। जैविक खाद को रासायनिक खाद के साथ नहीं मिलाना चाहिए। उर्वरक ‘सो एज़ो’ और ‘एसीटोबैक्टर’ नामों से उपलब्ध हैं।

फॉस्फोबैक्टीरिया:

सुपरन्यूट्रिएंट्स के बीच केवल उर्वरक के बाद मणिच्छा है, जिसे पौधों के विकास को बढ़ावा देने वाला माना जाता है। पौधों को केवल 15-20 प्रतिशत फास्फेट पोषक तत्व ही उपलब्ध होते हैं। फास्फोबैक्टीरिया बायोफर्टिलाइजर के प्रयोग से मिट्टी में मौजूद अघुलनशील पराग को घोलकर शहतूत की पत्तियों की वृद्धि और रेशम की गुणवत्ता में वृद्धि होती है। अच्छी खाद के साथ 2 किलो फॉस्फोबैक्टीरिया प्रति एकड़ डालें। फॉस्फोलाइन का विपणन सेरेबेस नाम से किया जाता है।

हम एम:

कृमि जीनस फंगस से संबंधित एक सूक्ष्मजीव है। इसका विस्तार वेसिकुलर अर्बुस्कुलर माइकोराइजा है। जिस मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा कम होती है, वहां कृमि नामक सूक्ष्मजीव कीड़ों में रहता है और उसके माध्यम से फैलता है और पौधों को नाइट्रोजन को अवशोषित करने में मदद करता है। शहतूत पौधों को कई सूक्ष्म पोषक तत्व भी प्रदान करता है। शहतूत के पौध उत्पादन के दौरान बीजों को वर्मवुड मिश्रण में डुबाकर प्रतिरोपण करना चाहिए। इस प्रकार लगाने से जड़ने की क्षमता में वृद्धि होती है तथा वृद्धि शीघ्र होती है। जड़ सड़न रोग जो कीड़ा जड़ी के प्रयोग से शहतूत को प्रभावित करता है जड़ के कीटाणुओं के हमले को कम करता है। अतः उपरोक्त जैव उर्वरकों का प्रयोग कर किसान कम लागत में शहतूत के पौधे की अच्छी देखभाल कर सकते हैं।

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