प्रति एकड़ 5 डिपर्स का प्रयोग करना चाहिए, 5 कुंडों की जुताई करनी चाहिए और मिट्टी को महीन चूर्ण में बदल देना चाहिए और 5 फीट के अंतराल पर नालियां बनानी चाहिए। नाली के मध्य में 3 फुट की दूरी पर एक घन फुट का गड्ढा कर लेना चाहिए तथा एक सप्ताह तक ठण्डा करने के बाद आधा टोकरी खाद तथा मिट्टी की ऊपरी मिट्टी मिलाकर प्रत्येक छिद्र में भर देना चाहिए। फिर एक गड्ढे में चार बीज बोने चाहिए।
एफिड्स को पीछे हटाने वाला उर्वरक!
निराई गुड़ाई के 20वें दिन 5 लीटर पंचगव्य को 100 किलो खाद में मिलाकर प्रत्येक पौधे को चार अंगुल तक पानी दें। 30वें दिन के बाद फूल आना शुरू हो जाता है। उस समय पंचकव्य मिलाकर 300 मिली प्रति टंकी (10 लीटर) की दर से छिड़काव करना चाहिए। प्रति एकड़ 10 टंकियों की आवश्यकता होती है। 40वें दिन 10 किलो राख का चूरा, 10 किलो बकरी के गोबर का चूरा, 10 किलो नीम का पेस्ट मिलाकर पानी का छिड़काव करना चाहिए। यह माहू के हमले को कम करने और फलियों की संख्या बढ़ाने में मदद करेगा।
कीड़ों के लिए कीटनाशक!
45 वें दिन टैंक (10 लीटर) को मिश्रित किया जाना चाहिए और 500 मिलीलीटर टेमोर समाधान (इस साइट पर पंजीकृत इस समाधान की तैयारी की विधि) के साथ छिड़काव किया जाना चाहिए। 50 दिनों के बाद फलने लगते हैं। एक बार फ्लश शुरू हो जाने के बाद, सप्ताह में एक बार टैंक (10 लीटर) में 300 मिली टेमोर के घोल और 150 मिली पंचगव्य का छिड़काव करना चाहिए। यदि कृमि का प्रकोप देखा जाता है, तो टैंक को एक लीटर हर्बल कीट विकर्षक के साथ स्प्रे करें। या प्रति टैंक 50 मिली नीम का तेल और थोड़ा सा खादी साबुन का घोल बनाकर छिड़काव करें। जब इस प्राकृतिक तरीके से खेती की जाती है, तो उपज में वृद्धि होती है और ककड़ी के पंख स्वादिष्ट होते हैं।