आइए देखें कि एक एकड़ जमीन में पुतला और बिरकन की खेती कैसे करें।
जलकुंभी सभी अच्छी जल निकासी वाली मिट्टी में उगती है। दुर्भावना के लिए डिग्री की आवश्यकता नहीं होती है। पोटाला की उम्र 160 दिन, बिरकान की उम्र 180 दिन होती है और इनकी खेती पूरे साल की जा सकती है। जुताई करके तैयार जुताई में 6 फुट के अन्तराल पर एक फुट चौड़ी लंबी पट्टी लेनी चाहिए। बार के मध्य में छोटे-छोटे गमलों में प्रति फुट एक बीज बोना चाहिए। बोने से पहले बीज को चंदन के घोल से उपचारित करना चाहिए। उसी बार में पहले एक छोटा बीज, एक पगड़ी में दूसरा छोटा बीज और तीसरे पग में बड़ा बीज बोना चाहिए। इसी तरह बारी-बारी से पुटाल की दो क्यारियां लगाने के बाद तीसरी क्यारी को बिरकान के बीजों से पौधे से पौधे की दूरी पर एक फुट की दूरी पर लगाना चाहिए।
रोपाई के बाद तीसरे दिन पोताला और पांचवे दिन परकन अंकुरित हो जाता है। पौधे के चार पत्ते हो जाने पर पौधे को जूट की रस्सी के टुकड़े से पंडाल में बांध दें। रस्सी का एक सिरा पौधे की निचली पत्ती से और दूसरा सिरा पंडाल से बंधा होना चाहिए। इसे तीन दिन में एक बार जूट में लपेटना चाहिए। यदि कोई साइड पिंपल्स हैं, तो उन्हें चुटकी बजाते ही निकाल देना चाहिए। तभी पंडाल में झंडा तेजी से पहुंचेगा। एक बार जब झंडा पंडाल को छू जाए तो झंडे को नुकसान पहुंचाए बिना इसे केले के रेशों से तारों से बांध देना चाहिए। 25 से 30 दिन के अंदर पंडाल में झंडा फैला दिया जाएगा। उस समय विकास प्रवर्तक के रूप में प्रति एकड़ 50 किलोग्राम तक के जैव उर्वरकों का प्रयोग किया जा सकता है।
इस खाद को पौधे के आधार के पास हाथ से खोदकर मिट्टी को ढक देना चाहिए। तीन दिन में एक बार सिंचाई करनी चाहिए ताकि मिट्टी सूख न जाए। यदि तीन सिंचाई में एक बार 10 किलो चने को पानी में घोलकर सिंचाई के पानी में मिला दिया जाए तो पौधों की वृद्धि बहुत अधिक होती है। हालाँकि, अधिक सिंचाई न करें। 30 दिनों के बाद फूल आना। उस समय कुछ बायो टॉनिक का छिड़काव करें और फूल बिना बहाए पिंच हो जाएंगे। कुरुमपुतला और लोंगपुतला दोनों 45 दिनों के बाद कटाई के लिए तैयार हैं।
उपज तक पहुंचने में बिरकन को 65 से 80 दिन लगते हैं। तब तक, कुरुमपुतल को हर दो दिनों में और पेरुमपुतल को तीन दिनों में एक बार काटा जा सकता है। 80 दिनों से अधिक के एक दिन बाद बिरकान की कटाई की जा सकती है। तो, एक चक्रीय प्रणाली में, हर दिन एक या दूसरे फल काटे जाते हैं। प्रत्येक कटाई के बाद, अतिरिक्त पत्तियों को हाथ से तोड़ देना चाहिए। तभी नए अंकुर निकलेंगे और अधिक फूल पैदा होंगे।
कीट और रोग के संक्रमण के संदर्भ में, माहू का प्रकोप अधिक होता है। बायो मेडिसिन का छिड़काव कर इसे नियंत्रित किया जा सकता है। अगला वायरस का हमला और होगा। यह बायोफार्मास्युटिकल स्टोर्स में भी उपलब्ध है। इसे इस्तेमाल किया जा सकता है। एफिड्स, पतंगे और सफेद मक्खियाँ भी अधिक आम हैं। आप इसके लिए निर्धारित दवाओं का छिड़काव कर सकते हैं। अन्यथा, बिरकन और पुतलाई दोनों की रखरखाव विधि समान है।
चंदन से बीजोपचार करें
धूल और मिट्टी रहित गाय के गोबर को आवश्यकतानुसार पानी डालकर दूध में घोलना चाहिए। इसमें बीज डालें और 24 घंटे के लिए भीगने दें। फिर बीज लेकर सूती कपड़े में डालकर पानी को छान लें। इसे एक कपड़े में गांठ लगाकर पानी में हल्का डुबाकर 6 घंटे तक छाया में रखना चाहिए। इसके बाद बीज लेकर बो दें तो अंकुरण अच्छा होगा।